पढ़ें अमर उजाला ई-पेपर
कहीं भी, कभी भी।
*Yearly subscription for just ₹299 Limited Period Offer. HURRY UP!
कोरोना काल में अर्थव्यवस्था पर पड़ी चोट असर दिखाने लगी है। कंपनियों में कर्मचारियों की संख्या घटी है तो रोजगार के नए अवसर भी नहीं पैदा हुए। आंकड़े बताते हैं कि ईपीएफओ इलाहाबाद परिक्षेत्र के अंतर्गत छह जिलों में अप्रैल से सितंबर के बीच 11 हजार कर्मचारियों के तो ईपीएफ खाते ही बंद हो गए हैं। वहीं 359 कंपनियों ने अपना अंश देना बंद कर दिया है। कोविड संक्रमण ने हजारों कर्मचारियों, श्रमिकों को सड़क पर लाकर खड़ा कर दिया है। अगस्त से सरकार का भी सहयोग नहीं मिल रहा है। जिससे रोजगार का संकट पहले से ज्यादा बढ़ गया है।
कर्मचारी भविष्य निधि संगठन से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार इलाहाबाद क्षेत्र के अंतर्गत मार्च में 1655 ऐसी संस्थाएं जिन्होंने अपने कर्मचारियों का ईपीएफ नियमित तौर पर जमा किया। वहीं खाताधारकों की संख्या 65 हजार से अधिक थी। इसके विपरीत अगस्त में नियमित अंशदान देने वाली संस्थाओं की संख्या घटकर 1463 ही रह गई। वहीं ईपीएफ खाताधारकों की संख्या भी घटकर 56 हजार रह गई। अगस्त के बाद सरकार ने भी सहयोग देना बंद कर दिया और सितंबर में नियमित पीएफ जमा करने वाली संस्थाओं की घटकर 1296 हो गई।
वहीं खाताधारकों की संख्या भी घटकर 54 हजार हो गई। इस तरह से सितंबर के महीने में ही 167 संस्थाओं ने ईपीएफ कटौती बंद कर दी। वहीं इस दौरान दो हजार कर्मचारियों के ईपीएफ खाते बंद हो गए। अभी अक्तूबर के आंकड़ें नहीं आए हैं लेकिन इस दौरान भी कई संस्थाओं के ईपीएफ कटौती की बात कही जा रही है। बता दें कि ईपीएफओ इलाहाबाद के अंतर्गत छह जिले प्रयागराज, कौशाम्बी, प्रतापगढ़, सुल्तानपुर, फैजाबादर व अमेठी आते हैं।
परदेस में भी छिनी रोजी-रोटी
रोजगार घटने का सिर्फ यही एक पहलू नहीं है। प्रयागराज समेत सभी छह जिलों में बेरोजगारी आंकड़ों से ज्यादा है। रोजगार के सीमित संसाधन होने के चलते हजारों लोग बाहरी प्रदेशों में काम करते हैं। कोरोना संक्रमण के दौरान बहुत कम ऐसे लोग हैं, जिनको फिर से नौकरी मिल पाई। जबकि रोजगार गंवाने वालों की संख्या कहीं ज्यादा है। लॉकडाउन के बीच मुंबई, गुजरात से जैसे-तैसे अपने घरों को पहुंचे हजारों श्रमिकों के सामने रोजी-रोटी का संकट है।
मॉल और शोरूम में भी
शहर में कई ऐसे मॉल, शोरूम और दुकानों से जुड़े सैकड़ों कर्मचारी हैं। करीब तीन महीने के लॉकडाउन में कारोबार पर तो चोट पड़ी ही, नौकरियां भी खत्म हो गईं। अनलॉक की प्रक्रिया शुरू होने के बाद भी हालात सामान्य नहीं हो पाए हैं। इन मॉल और शोरूम से जुड़े कई कर्मचारी अपनी नौकरी गंवा चुके हैं। उनके लिए अपने शहर में तो नौकरी नहीं ही है, बाहर भी कोई उम्मीद नजर नहीं आती।
कोरोना काल में अर्थव्यवस्था पर पड़ी चोट असर दिखाने लगी है। कंपनियों में कर्मचारियों की संख्या घटी है तो रोजगार के नए अवसर भी नहीं पैदा हुए। आंकड़े बताते हैं कि ईपीएफओ इलाहाबाद परिक्षेत्र के अंतर्गत छह जिलों में अप्रैल से सितंबर के बीच 11 हजार कर्मचारियों के तो ईपीएफ खाते ही बंद हो गए हैं। वहीं 359 कंपनियों ने अपना अंश देना बंद कर दिया है। कोविड संक्रमण ने हजारों कर्मचारियों, श्रमिकों को सड़क पर लाकर खड़ा कर दिया है। अगस्त से सरकार का भी सहयोग नहीं मिल रहा है। जिससे रोजगार का संकट पहले से ज्यादा बढ़ गया है।
कर्मचारी भविष्य निधि संगठन से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार इलाहाबाद क्षेत्र के अंतर्गत मार्च में 1655 ऐसी संस्थाएं जिन्होंने अपने कर्मचारियों का ईपीएफ नियमित तौर पर जमा किया। वहीं खाताधारकों की संख्या 65 हजार से अधिक थी। इसके विपरीत अगस्त में नियमित अंशदान देने वाली संस्थाओं की संख्या घटकर 1463 ही रह गई। वहीं ईपीएफ खाताधारकों की संख्या भी घटकर 56 हजार रह गई। अगस्त के बाद सरकार ने भी सहयोग देना बंद कर दिया और सितंबर में नियमित पीएफ जमा करने वाली संस्थाओं की घटकर 1296 हो गई।
वहीं खाताधारकों की संख्या भी घटकर 54 हजार हो गई। इस तरह से सितंबर के महीने में ही 167 संस्थाओं ने ईपीएफ कटौती बंद कर दी। वहीं इस दौरान दो हजार कर्मचारियों के ईपीएफ खाते बंद हो गए। अभी अक्तूबर के आंकड़ें नहीं आए हैं लेकिन इस दौरान भी कई संस्थाओं के ईपीएफ कटौती की बात कही जा रही है। बता दें कि ईपीएफओ इलाहाबाद के अंतर्गत छह जिले प्रयागराज, कौशाम्बी, प्रतापगढ़, सुल्तानपुर, फैजाबादर व अमेठी आते हैं।
परदेस में भी छिनी रोजी-रोटी
रोजगार घटने का सिर्फ यही एक पहलू नहीं है। प्रयागराज समेत सभी छह जिलों में बेरोजगारी आंकड़ों से ज्यादा है। रोजगार के सीमित संसाधन होने के चलते हजारों लोग बाहरी प्रदेशों में काम करते हैं। कोरोना संक्रमण के दौरान बहुत कम ऐसे लोग हैं, जिनको फिर से नौकरी मिल पाई। जबकि रोजगार गंवाने वालों की संख्या कहीं ज्यादा है। लॉकडाउन के बीच मुंबई, गुजरात से जैसे-तैसे अपने घरों को पहुंचे हजारों श्रमिकों के सामने रोजी-रोटी का संकट है।
मॉल और शोरूम में भी
शहर में कई ऐसे मॉल, शोरूम और दुकानों से जुड़े सैकड़ों कर्मचारी हैं। करीब तीन महीने के लॉकडाउन में कारोबार पर तो चोट पड़ी ही, नौकरियां भी खत्म हो गईं। अनलॉक की प्रक्रिया शुरू होने के बाद भी हालात सामान्य नहीं हो पाए हैं। इन मॉल और शोरूम से जुड़े कई कर्मचारी अपनी नौकरी गंवा चुके हैं। उनके लिए अपने शहर में तो नौकरी नहीं ही है, बाहर भी कोई उम्मीद नजर नहीं आती।
Source link