अमर उजाला नेटवर्क, प्रयागराज
Updated Wed, 25 Nov 2020 08:57 PM IST
प्रतीकात्मक तस्वीर
– फोटो : अमर उजाला
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कोरोना संक्रमण के बढ़ते प्रकोप के मद्देनजर सार्वजनिक स्थानों और विवाह आदि समारोहों में लोगों की उपस्थिति सीमित करने के लिए प्रदेश के मुख्य सचिव ने पूर्व अनुमति लेने का आदेश जारी किया है। शादी या विवाह की अनुमति लेने की बाध्यता के आदेश को इलाहाबाद हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता और कांस्टीट्यूशनल एंड सोशल रिफॉर्म के राष्ट्रीय अध्यक्ष एएन त्रिपाठी गैर कानूनी, धार्मिक तथा व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकारों का हनन मानते हैं। उन्होंने मुख्यमंत्री से आदेश वापस लेने की मांग की है।
त्रिपाठी का कहना है कि शादी के लिए अनुमति लेने का मुख्य सचिव का 23 नवंबर 20 को जारी आदेश कानून नहीं है। यह केंद्र सरकार के 30 सितंबर 20 के कोविड-19 दिशा निर्देशों के प्रतिकूल है। राज्य सरकार बिना शासनादेश जारी किए धार्मिक समारोह के आयोजन पर शर्तें नहीं थोप सकती। त्रिपाठी ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 25 धर्म की स्वतंत्रता देता है। अनुच्छेद 26 धार्मिक परंपरा के अनुसार समारोह की अनुमति देता है। अनुच्छेद 21 जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार देता है। राज्य सरकार को सांविधानिक अधिकारों मे हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है।
त्रिपाठी ने कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा सात शादी समारोह में परंपरा के अनुसार कार्यक्रम आयोजन करने की व्यवस्था देती है। सुप्रीम कोर्ट ने भी सप्तपदी को धर्म का अटूट हिस्सा माना है। विवाह धार्मिक स्वतंत्रता अधिकार में शामिल है। सरकार को अनुमति लेने के नाम पर हस्तक्षेप का अधिकार नहीं है। त्रिपाठी ने कहा कि होटल या विवाहघर को सरकारी लाइसेंस मिला हुआ है तो अलग से जिलाधिकारी की अनुमति लेने को बाध्य करना मनमाना व अवैधानिक कृत्य है।
कोरोना संक्रमण के बढ़ते प्रकोप के मद्देनजर सार्वजनिक स्थानों और विवाह आदि समारोहों में लोगों की उपस्थिति सीमित करने के लिए प्रदेश के मुख्य सचिव ने पूर्व अनुमति लेने का आदेश जारी किया है। शादी या विवाह की अनुमति लेने की बाध्यता के आदेश को इलाहाबाद हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता और कांस्टीट्यूशनल एंड सोशल रिफॉर्म के राष्ट्रीय अध्यक्ष एएन त्रिपाठी गैर कानूनी, धार्मिक तथा व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकारों का हनन मानते हैं। उन्होंने मुख्यमंत्री से आदेश वापस लेने की मांग की है।
त्रिपाठी का कहना है कि शादी के लिए अनुमति लेने का मुख्य सचिव का 23 नवंबर 20 को जारी आदेश कानून नहीं है। यह केंद्र सरकार के 30 सितंबर 20 के कोविड-19 दिशा निर्देशों के प्रतिकूल है। राज्य सरकार बिना शासनादेश जारी किए धार्मिक समारोह के आयोजन पर शर्तें नहीं थोप सकती। त्रिपाठी ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 25 धर्म की स्वतंत्रता देता है। अनुच्छेद 26 धार्मिक परंपरा के अनुसार समारोह की अनुमति देता है। अनुच्छेद 21 जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार देता है। राज्य सरकार को सांविधानिक अधिकारों मे हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है।
त्रिपाठी ने कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा सात शादी समारोह में परंपरा के अनुसार कार्यक्रम आयोजन करने की व्यवस्था देती है। सुप्रीम कोर्ट ने भी सप्तपदी को धर्म का अटूट हिस्सा माना है। विवाह धार्मिक स्वतंत्रता अधिकार में शामिल है। सरकार को अनुमति लेने के नाम पर हस्तक्षेप का अधिकार नहीं है। त्रिपाठी ने कहा कि होटल या विवाहघर को सरकारी लाइसेंस मिला हुआ है तो अलग से जिलाधिकारी की अनुमति लेने को बाध्य करना मनमाना व अवैधानिक कृत्य है।
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